
मेरठ हीरा टाइम्स ब्यूरो। उर्दू भाषा के जन्म से लेकर आज तक विद्वानों ने उर्दू के प्रचार-प्रसार में प्रमुख भूमिका निभाई है और विद्वानों ने हमेशा उर्दू साहित्य को पोषित किया है। उर्दू के दुश्मन अपनी अज्ञानता और पूर्वाग्रह के कारण इस भाषा को धार्मिक भाषा मानने लगे, जबकि इस भाषा को बढ़ावा देने वाले विद्वान ही थे। बहुत से लोगों ने यह समझ लिया है कि विद्वानों ने इस भाषा की सेवा की और यह एक धार्मिक भाषा बन गई, जबकि इसे अंतर्राष्ट्रीय भाषा माना जाना चाहिए था। यह शब्द थे प्रसिद्ध धार्मिक विद्वान मौलाना शाह आलम गोरखपुरी के, जो चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय के उर्दू विभाग और अंतर्राष्ट्रीय युवा उर्दू स्कालर्स ऐसोसिएशन (आईवाईयूएसए) द्वारा आयोजित “उर्दू साहित्य में देवबंद की भूमिका” विषय पर मुख्य अतिथि के रूप में अपना भाषण दे रहे थे। उन्होंने आगे कहा कि इसे बिना किसी भेदभाव, संप्रदायवाद और पूर्वाग्रह के पोषित किया गया है।
कार्यक्रम की शुरुआत सईद अहमद सहारनपुरी ने पवित्र कुरान की तिलावत से हुई। अध्यक्षता प्रो. सगीर अफ्राहीम (पूर्व अध्यक्ष, उर्दू विभाग अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय) ने की। इस अवसर पर मौलाना शाह आलम गोरखपुरी मुख्य अतिथि के रूप में तथा मौलाना मुहम्मद शादाब उन्नावी ख्नाजिम मजलिस तहफ्फुज खत्म नबूव्वत, भोपाल,, डॉ. मुहम्मद यासीन कुरैशी ख्प्रसिद्ध चिकित्सक, मुजफ्फरनगर, और मुहम्मद हारून ख्शोध विद्यार्थी, उर्दू विभाग, चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय, ने शोध पत्र वक्ता के रूप में भाग लिया। आयुसा अध्यक्ष प्रोफेसर रेशमा परवीन वक्ता के रूप में ऑनलाइन उपस्थित थीं।
स्वागत भाषण डॉ. इरशाद स्यानवी ने, संचालन मुहम्मद नदीम ने और धन्यवाद ज्ञापन मुहम्मद ईसा ने दिया। प्रोफेसर असलम जमशेदपुरी ने कहा कि देवबंद में कई साहित्यिक मित्र हैं, जो उर्दू शायरी, आलोचना और पत्रकारिता के क्षेत्र में महत्वपूर्ण उपलब्धियां हासिल कर रहे हैं। दारुल उलूम के स्नातक जो स्वयं को कासमी कहते हैं, उन्होंने उर्दू साहित्य को अनेक सेवाएं प्रदान की हैं, जैसे अबुल कलाम कासमी, हक्कानी कासमी, डॉ. मुहम्मद मतार, डॉ. नवाज देवबंदी आदि ने देवबंद के साहित्यिक माहौल में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इसी तरह जब भी मीडिया में इसकी चर्चा होगी, अंजुम उस्मानी को बार-बार याद किया जाएगा। दारुल उलूम देवबंद को दुनिया की महान संस्थाओं में से एक माना जाता है। कार्यक्रम से डॉ. आसिफ अली, डॉ. शादाब अलीम, डॉ. अलका वशिष्ठ, फरहत अख्तर, मुहम्मद शमशाद एवं छात्र जुड़े रहे।