गोरखपुर एजेंसी। गोरखपुर में हिंदी दिवस पर आयोजित एक कार्यक्रम में उन्होंने आदि शंकर की कहानी सुनाई। कहा- आदि शंकर ने जिस ज्ञानवापी के लिए साधना की.. दुर्भाग्य से उस ज्ञानवापी को लोग मस्जिद कहते हैं। उन्होंने कहा था-त्रिशूल मस्जिद के अंदर क्या कर रहा है। हमने तो नहीं रखे न। ज्योतिर्लिंग हैं, देव प्रतिमाए हैं। पूरी दीवारें चिल्ला-चिल्ला के क्या कह रही हैं। मुझे लगता है कि मुिस्लम समाज की ओर से यह प्रस्ताव आना चाहिये कि ऐतिहासिक गलती हुई है।
हिंदी दिवस पर दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर यूनिवर्सिटी में अयोजित कार्यक्रम में सीएम ने कहा- याद करिए, केरल में जन्मा एक संन्यासी आदि शंकर के रूप में भारत के चार कोनों में चार पीठों की स्थापना करता है। आचार्य शंकर जब अपने अद्वैत ज्ञान से परिपूर्ण होकर आगे की साधना के लिए काशी आए। तब साक्षात भगवान विश्वनाथ ने उनकी परीक्षा ली। ब्रह्म मुहूर्त में आदि शंकर गंगा स्नान के लिए जा रहे थे। भगवान सबसे अछूत कहे जाने वाले चंडाल के रूप में उनके मार्ग पर खड़े हो गए। उन्हें देखकर आदि शंकर ने कहा- मेरे मार्ग से हटो। चंडाल ने उसने पूछा- आप अपने आपको अद्वैत ज्ञान के मर्मज्ञ मानते हैं। आप किसे हटाना चाहते हैं? आपका ज्ञान क्या इस भौतिक काया को देख रहा? या भौतिक काया के अंदर बसे हुए ब्रह्म को? अगर ब्रह्म सत्य है, तो जो ब्रह्म आपके अंदर है, वही ब्रह्म मेरे अंदर भी है। इस ब्रह्म सत्य को जानकर भी ठुकरा रहे हैं। इसका मतलब आपका यह ज्ञान सत्य नहीं है। आदि शंकर भौचक्के रह गए। उन्होंने पूछा- आप कौन हैं। मैं जानना चाहता हूं? जवाब में भगवान ने कहा- जिस ज्ञानवापी की उपासना के लिए आप केरल से चलकर यहां आए हैं। मैं साक्षात स्वरूप विश्वनाथ हूं।
दुर्भाग्य से वो ज्ञानवापी, जिसे लोग आज दूसरे शब्दों में मस्जिद कहते हैं, लेकिन वो ज्ञानवापी साक्षात विश्वनाथ ही हैं।
हिंदी देश को जोड़ने की एक वैधानिक भाषा है। मैं मानता हूं कि बहुसंख्यक आबादी, जिसे जानती, पहचानती और समझती है। वो राजभाषा हिंदी है। राज्यभाषा हिंदी के बारे में एक बात जरूर है कि इसका मूल देववाणी संस्कृत से है। जब हम भाषा का अध्ययन करते हैं, तब दुनिया में जितनी भी भाषाएं और बोलियां हैं। कहीं न कहीं उनका स्रोत देववाणी संस्कृत में है। वो वैदिक संस्कृत या व्यावहारिक संस्कृत हो सकती है। सीएम ने कहा- अगर हमारे भाव और भाषाएं स्वयं की नहीं है, तो यह हमारी प्रगति को बाधित करेगी। यह विकास का बैरियर होगा। मेडिकल और इंजीनियरिंग के पाठ्यक्रम अब हिंदी में दिखाई देते हैं। महाऋषि गोरक्षनाथ की परंपरा में भी सभी को सम्मान दिया जाता है। सभी को जोड़ने का प्रयास किया। उन्होंने समाज के कई तबकों को जोड़ने का काम किया है। सीएम ने कहा- उस समय मलिक मोहम्मद जायसी, जिन्होंने पद्मावत रची थी। पद्मावत में मलिक मोहम्मद जायसी गोरक्षनाथ जी के बारे में कहते हैं- बिनु गुरु पंथ न पाइए, भूलै से जो भेंट। जोगी सिद्ध होई तब, जब गोरख सौं भेंट। कबीर जी ने भी गोरक्षनाथ जी की योग पद्धति के बारे में बातें कही हैं। अगर हम हिंदी दिवस पर हिंदी साहित्य के बारे में चर्चा करते हैं, तो संत साहित्य से यह परंपरा आगे बढ़ती है। परंपरा में महायोगी गोरक्षनाथ का साहित्य दिखाई देता है। उस पर शोध और कार्यक्रम को हम आगे बढ़ाएंगे।