अनिल बंसल
लोद जयंत चौधरी ने सपा से नाता तोड़ने और भाजपा गठबंधन में शामिल होने की मुख्य वजह अपने दादा चौधरी चरण सिंह को केंद्र की भाजपा सरकार द्वारा भारत रत्न से सम्मानित करना बताई है। इसमें कोई संदेह नहीं कि चौधरी चरण सिंह किसानों के एक बड़े नेता थे और वे राजनीति में ईमानदारी के लिए भी खास पहचान रखते हैं।
मगर बहुत कम लोगों को यह जानकारी होगी कि चौधरी चरण सिंह अपने जीवन का पहला लोकसभा चुनाव ही बुरी तरह हार गए थे। इस हार का मुंह उन्हें मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट पर देखना पड़ा था । चौधरी चरण सिंह मुजफ्फरनगर में 1971 में पराजित हो जाने के बाद बागपत संसदीय क्षेत्र से 1977, 1980 और 1984 के तीनों लोकसभा चुनाव अच्छे अंतर से जीते। अपना राजनीतिक करिअर उन्होंने विधानसभा से शुरू किया था।
लोगों के घरों में चूल्हा नहीं जला: चौधरी चरण सिंह अपने जीवन का पहला ही लोकसभा चुनाव 50279 वोट से हार गए। इस हार का उनके समर्थक किसानों को गहरा सदमा लगा खासकर जाटों ने तो कई जगह यह खबर सुनते ही अपने ट्रांजिस्टर भी गुस्से में तोड़ दिए द्य अनेक लोगों के घरों में चूल्हा नहीं जला। बहरहाल, मुजफ्फरनगर भले रास न आया हो पर बागपत लोकसभा क्षेत्र ने उन्हें कभी हारने नहीं दिया।
सूबे की छपरौली विधानसभा सीट से वे से संयुक्त विधायक दल सरकार के मुख्यमंत्री बने। ये 1937 में पहली बार विधायक चुने गए थे । 1970 में दूसरी बार मुख्यमंत्री बने पर पहली बार महज उसके बाद 1974 तक जितने भी चुनाव हुए, उन्होंने 328 दिन और दूसरी बार 225 दिन ही इस कुर्सी पर बैठ छपरौली से सरोकार नहीं तोड़ा और छपरौली ने भी उन्हें पाए। जहां तक मुजफ्फरनगर के लोकसभा चुनाव में हार हमेशा सिर आंखों पर बिठाया और एकतरफा जिताकर का सवाल है, यह चुनाव उन्होंने अपनी पार्टी भारतीय भेजा। इलाके के लोगों का उनके प्रति सम्मान और लगाव क्रांति दल के उम्मीदवार की हैसियत से लड़ा था। कांग्रेस इतना अधिक था कि वे नामांकन दाखिल करने के ने इस चुनाव में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी से तालमेल अलावा अपने क्षेत्र में चुनाव प्रचार के लिए कभी नहीं किया था और मुजफ्फरनगर सीट इस पार्टी के लिए छोड़ी आते थे। चौधरी चरण सिंह शुरू में कांग्रेस में थे। लेकिन थी। भाकपा की तरफ से राजपूत बिरादरी के कामरेड थी । भाकपा की तरफ से राजपूत बिरादरी के कामरेड 1967 में उन्होंने कांग्रेस छोड़कर अपनी अलग पार्टी विजय पाल सिंह से चरण सिंह का मुकाबला हुआ। तब भारतीय क्रांति दल का गठन किया और विपक्ष की मदद इस लोकसभा में कुल 538144 मतदाता थे । कुल 382202 मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया। इनमें से 6742 मत रद्द कर दिए गए। कुल वैध मतों 375460 में से विजय पाल सिंह को 203193 और चरण सिंह को 152914 वोट मिले। इस तरह चरण सिंह अपने जीवन का पहला ही लोकसभा चुनाव 50279 वोट से हार गए। इस हार का उनके समर्थक किसानों को गहरा सदमा लगा। खासकर जाटों ने तो कई जगह यह खबर सुनते ही अपने ट्रांजिस्टर भी गुस्से में तोड़ दिए। अनेक लोगों के घरों में चूल्हा नहीं जला।
बहरहाल, मुजफ्फरनगर भले रास न आया हो पर बागपत लोकसभा क्षेत्र ने उन्हें कभी हारने नहीं दिया। आपातकाल के बाद 1977 के चुनाव में तो खैर कांग्रेस उत्तर प्रदेश की सभी 85 सीटों पर हार गई थी । चरण सिंह काफी बड़े अंतर से जीते और मोरारजी देसाई की सरकार में गृहमंत्री रहे। वे बाद में उपप्रधानमंत्री भी बने और फिर जनता पार्टी को तोड़कर कांग्रेस की मदद से 28 जुलाई 1979 को प्रधानमंत्री बन गए। यह बात अलग है कि वे इस पद पर महज 170 दिन ही रह पाए ।
(जनसत्ता से सहभार)…