चीनी मिल मालिकों ने एथनोल पर किया फोकस, मक्का, चावल की खरीदारी में आ रही तेजी।
बिजनौर। ( गन्ना पैराई सत्र पर आरिफ जैदी की विशेष रिपोर्ट ) यूँ तो समस्त उत्तर प्रदेश में गन्ने की बुआई का सब फसलों से अधिक चलन है, लेकिन पिछले 10 वर्षो से 2023 व 24 ऐसा गन्ना पैराई सत्र कहा जा सकता है जो चीनी मीलों के लिये घाटे का सौदा कहा जा सकता है जिसका अनुमान लगाया सहज इस बात से लगाया जा सकता है की मौजूदा वर्ष में पिछले वर्ष की अपेक्षा पैराई का स्तर का संतोष जनक नहीं रहा। जिसका अनुमान इससे लगाया जा सकता की मिल का मुख्य प्रबंध तन्त्र सही जानकारी देने से बचने के लिये फोन रिसीव करने से बचता रहा है ।
गत वर्ष 22 व 23 के पैराई सत्र में बिड़ला ग्रुप की प्रथम और सबसे पुराना चीनी उद्योग अपर गंगेज चीनी मिल जिसका नाम बदल कर अब अवध शुगर एन्ड एनर्जी हो गया है में गन्ना पैराई अक्टूबर माह से प्रारम्भ होकर वर्ष 2023 के माह मई के अंत में पूर्ण हुआ था जबकि इस वर्ष 20-24के माह मार्च में ही यह गन्ना पैराई सत्र अंतिम सांसे लेने लगा है जबकि कई चीनी मिल बिलारी, नांदेई, रानी नगले, बेलवाड़ा, शाहबाद आदि पहले ही अपने अपने गन्ना पैराई सत्र को गुड बाई के चुके हैं ।
जब हमने गन्ना पैराई सत्र समय से पूर्व समाप्त होने की पड़ताल की तो कई कारण निकलकर सामने आये जिसमें सबसे महत्वपूर्ण कारण गन्ना एक भयंकर बीमारी से अपनी पैदावार खो बैठा है अब अगली गन्ने की फसल नवीनतम गन्ना बीज की बुआई होने की संभावना अधिक है जबकि लोग इस गन्ने की बीमारी को गन्ने का कैंसर बता रहे हैं ।
इसके अलावा गन्ने के रस की रिकवरी काफी कम रही है और चीनी का उत्पादन कम हुआ है भारत में इस वर्ष चीनी उत्पादन में भारी गिरावट के चलते 50 से 60 लाख टन चीनी में कमी आ सकती है। जिससे इस बार चीनी का निर्यात की संभावना कम ही जान पड़ती है ।
सबसे बड़ा चीनी मिलो में गन्ने का मूल्य कम होना भी मना जा रहा है जगह जगह लगे गुड़ क्रेशर गन्ने का मूल्य प्रति कुवंटल 400 रुपया किसानो को केश अदा कर रहे थे तो वहीं गन्ना मिल 350 प्रति कुवंटल के हिसाब से गन्ना खरीद रहे थे।
बताते चले कि चीनी मिलो लगातार बढ़ोतरी से चिंतित चीनी मिल मालिकों ने अब अपना फोकस एथनोल पर कर लिया जिसके लिये अब गन्ने के स्थान पर उन्होंने मक्का और चावल कि खरीदारी तेज कर दी है जिसमे इस इलाके में सबसे पहले शुरुआत धामपुर चीनी मिल ने पिछले वर्ष शुरू करदी थी गन्ने की इस भयंकर बीमारी को किसान विषेला खाद और कीटनाशक दवाइयों की अधिकता को ईश्वर का प्रकोप मान रहे है।