नई दिल्ली एजेंसी। सुप्रीम कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट को आदेश दिया कि जब तक संभल मस्जिद की शाही ईदगाह कमेटी हाईकोर्ट नहीं जाती, तब तक मामले को आगे न बढ़ाया जाए। सुप्रीम कोर्ट का आदेश है कि एडवोकेट कमिश्नर की सर्वे रिपोर्ट को सीलबंद लिफाफे में रखा जाए। सुप्रीम कोर्ट ने मामले को अपने समक्ष लंबित रखा और मामले को 6 जनवरी, 2025 से शुरू होने वाले सप्ताह में सुनवाई के लिए पोस्ट किया। हिंदू पक्ष का प्रतिनिधित्व विष्णु शंकर जैन ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संभल में शांति और सद्भाव कायम रखा जाए. ैब् ने एक आदेश पारित कर मस्जिद कमेटी को हाई कोर्ट जाने और ट्रायल कोर्ट के आदेश को चुनौती देने का निर्देश दिया है। ैब् ने एडवोकेट उन्होंने कहा कि कमिश्नर को अपनी रिपोर्ट सीलबंद कवर में दाखिल करने का भी निर्देश दिया है। कोर्ट ने कहा है कि वह मामले के गुण-दोष पर कोई राय व्यक्त नहीं कर रहा है। ैब् ने उनसे (मस्जिद समिति से) आदेश को इलाहाबाद उच्च न्यायालय में चुनौती देने के लिए कहा है और इसे दायर किया गया है और इसे 3 कार्य दिवसों में भ्ब् के समक्ष सूचीबद्ध किया जाना चाहिए। मामले में ट्रायल कोर्ट की कार्यवाही पर सीमित रोक है। इससे पहले संभल सांसद जिया उर रहमान बर्क ने कहा कि समाजवादी पार्टी मांग कर रही है कि जांच समिति में सुप्रीम कोर्ट के मौजूदा जज को शामिल किया जाए। सपा नेता ने कहा कि हमने सुप्रीम कोर्ट से मांग की है कि संभल की शाही जामा मस्जिद में सर्वे को लेकर जो मामला जिला अदालत में है, उसे रोका जाए और मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में की जाए। पूजा स्थल अधिनियम का सही उपयोग होना चाहिए। अब अजमेर दरगाह को लेकर भी याचिका दायर की गई है। ये सब कब रुकेगा?…कुछ चुनिंदा लोगों को माहौल बिगाड़ने का मौका क्यों दिया जा रहा है?आजाद समाज पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष चन्द्रशेखर आजाद ने कहा कि हमें सुप्रीम कोर्ट से बहुत उम्मीदें हैं। सुप्रीम कोर्ट ने लगातार उत्तर प्रदेश की बीजेपी सरकार के गलत कामों को रोकने का काम किया है। इस बार भी हमें विश्वास है कि सुप्रीम कोर्ट जो अत्याचार हो रहा है उसे रोकने में मदद करेगा।
इसको लेकर संसद में एक संशोधन बिल आना चाहिए, 1991 के (पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम) के संबंध में एक संशोधन बिल आना चाहिए एवं पिछले बिल की कमियों को दूर किया जाये। केंद्रीय मंत्री जयंत सिंह चौधरी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट को फैसला करना चाहिए। मुझे लगता है कि पूजा स्थल अधिनियम की अपनी पवित्रता है और अयोध्या फैसले और सुप्रीम कोर्ट ने भी कुछ रास्ते तय किए हैं। इसलिए अब यह सुप्रीम कोर्ट पर निर्भर है कि वह इस पर दिशानिर्देश तय करे। किसी को भी कानून अपने हाथ में नहीं लेना चाहिए। भीड़ क्यों बनाई जा रही है? क्यों हो रही है पत्थरबाजी?