महाराष्ट्र की राजनीति में कभी केवल और केवल कांग्रेस का ही सिक्का बुलंद हुआ करता था। चाहे वो राज्य के पहले मुख्यमंत्री यशवंतराव चव्हाण हो या अपनी पार्टी बनाने से पहले तक शरद पवार सीएम के चेहरे बदलते रहे लेकिन कांग्रेस का ही परचम लहराता रहा। लेकिन कांग्रेस के इस अमेद्द किले में बीजेपी-सेना गठबंधन ने 1995 में सेंध लगाई कि फिर उससे कांग्रेस कुछ सालों बाद तो उभर आई। लेकिन पहले जैसी वो बात नहीं रही। कांग्रेस के लिए शनिवार का दिन ऊहापोह वाली स्थिति लेकर आया। लोकसभा चुनावों में अपने सीटों के आंकड़े को 99 तक पहुंचाने वाली देश की ग्रैंड ओल्ड पार्टी एक महीने पहले हरियाणा में हार के बाद अब महाराष्ट्र और झारखंड के रुझान बताते हैं कि एक बार फिर उसके लिए राह मुफीद नहीं रही है।
अभी तक के रुझानों से पता चलता है कि कांग्रेस को महाराष्ट्र में हार का सामना करना पड़ सकता है वह दोपहर 12 बजे 19 सीटों पर आगे थी। वहीं एक और राज्य झारखंड में कमजोर कड़ी के रूप में उभर रही है। एकमात्र राहत की बात यह है कि झारखंड में अपने सहयोगी झामुमो के हैविवेट प्रदर्शन के साथ, इंडिया ब्लॉक बहुमत के आंकड़े को पार करता नजर आ रहा है। अगर रुझान सही रहे तो यह कांग्रेस के लिए बुरी, बल्कि भयानक खबर है। विशेष रूप से महाराष्ट्र में जहां कांग्रेस ने अपने दम पर और महा विकास अघाड़ी (एमवीए) ने मिलकर लोकसभा चुनावों में भाजपा और महायुति को मात दी थी।
लोकसभा 2024 के परिणाम से बढ़ा आत्मविश्वास अब फिर मटियामेट: लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने महाराष्ट्र की 48 लोकसभा सीटों में से 17 पर चुनाव लड़ा था और 13 सीटें जीतने में कामयाब रही। 2019 के लोकसभा चुनाव की बात करें तो कांग्रेस ने महाराष्ट्र में सिर्फ एक सीट हासिल की थी, लेकिन इस साल 13 सीटें जीत लीं। इससे न सिर्फ कांग्रेस का आत्मविश्वास बढ़ा बल्कि उसकी अपने सहयोगियों के साथ बार्गेनिंग पॉवर भी बढ़ी। कई लोगों ने तर्क दिया था कि यह प्रदर्शन कांग्रेस और एमवीए के आक्रामक अभियान के बाद आया था कि केंद्र में 400 से अधिक बहुमत के साथ सत्ता बरकरार रखने वाली भाजपा संविधान को बदल सकती है और आरक्षण वास्तुकला को कमजोर कर सकती है। इसके साथ ही जाति जनगणना की जोरदार वकालत और 50ः आरक्षण की सीमा को तोड़ने की मांग भी शामिल थी। कांग्रेस फिर से उन्हीं नारों और विषयों के साथ महाराष्ट्र में प्रचार में उतरी। घबराए पार्टी नेताओं ने शनिवार को कहा कि लोकसभा चुनाव ने शायद लोगों को अपना गुस्सा जाहिर करने का मौका दे दिया है और वे एनडीए में वापस जाने के लिए तैयार हैं। एक वरिष्ठ कांग्रेस नेता ने इंडियन एक्सप्रेस के हवाले से कहा कि बीजेपी ने भारी मात्रा में पैसा खर्च किया। हम किसी भी क्षण यह अनुमान नहीं लगा सके कि यह एक लहर वाला चुनाव होने जा रहा है, हमने इसकी कभी कल्पना भी नहीं की थी। निःसंदेह, इसके कई कारण हो सकते हैं।
हमारी सीट का तालमेल सही नहीं था। गठबंधन में सभी नेता मुख्यमंत्री पद के लिए प्रयासरत थे। लेकिन ऐसा लगता है कि लड़की बहन योजना का बहुत बड़ा प्रभाव पड़ा है। विदर्भ क्षेत्र से जगी उम्मीद टूट गई: बड़ी उम्मीद विदर्भ क्षेत्र से थी, जो 62 विधानसभा सीटों और 10 लोकसभा क्षेत्रों वाला कपास क्षेत्र है। लोकसभा चुनाव में बीजेपी सिर्फ दो सीटें ही जीत सकी।
कांग्रेस ने पांच सीटें जीती थीं और उसके सहयोगी राकांपा और शिवसेना (यूबीटी) ने एक-एक सीट जीती थी। इस क्षेत्र में कांग्रेस परंपरागत रूप से मजबूत रही है, लेकिन भाजपा ने पिछले दो दशकों में बड़ी बढ़त बना ली है। 2014 में बीजेपी ने विदर्भ में 62 में से 44 सीटें जीतकर परचम लहराया था। 2019 में इसकी संख्या गिरकर 29 सीटों पर आ गई, जिससे इसकी कुल सीटें कम हो गईं। कांग्रेस को विदर्भ में पुनरुत्थान का भरोसा था और उसने लोकसभा नतीजों को पहला कदम माना। लेकिन शनिवार के रुझानों ने इसे झूठला दिया है।