मेरठ। विश्व की महानतम क्रांतियां में से एक 1857 की क्रांति के गुमनाम क्रांतिकारियों को क्षेत्रीय इतिहास लेखन के माध्यम से जन सामान्य के बीच प्रकाश में लाने का पवित्र कार्य ऐसे कार्यक्रमों के द्वारा ही संभव है। इसी के अंतर्गत 2007 में इतिहासकार अमित पाठक के साथ मिलकर हम दोनों ने बागपत जनपद में शहीद नमन यात्रा प्रारंभ की थी ,जिसमें अल्पज्ञात व गुमनाम शहीदों के गांव में घर-घर जाकर उन शहीदों को नमन करना और उनके योगदान को भावी पीढ़ी तक सुरक्षित पहुंचाने का कार्य करने का उद्देश्य था।
1857 की क्रांति के शहीद सरधना क्षेत्र के अकलपुरा गांव के निवासी नरपत सिंह भी ऐसे ही क्रांतिकारी में से एक हैं। ये विचार चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग स्थित वीर बदा बैरागी सभागार में शहीद नरपत सिंह एवं सरधना क्षेत्र का योगदान विषयक एक दिवसीय विचार गोष्ठी में मुख्य वक्ता के रूप में इतिहास विभाग अध्यक्ष प्रोफेसर कृष्णकांत शर्मा ने व्यक्त किये । इतिहास विभाग चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय मेरठ एवं राजनीति शास्त्र विभाग दिगंबर जैन कॉलेज बड़ोत बागपत के संयुक्त तत्वावधान में उक्त विषयक एक दिवसीय विचार गोष्ठी का आयोजन हुआ इसके संयोजक डॉक्टर स्नेहा वीर पुंडीर रहे। इस अवसर पर वरिष्ठ इतिहासकार प्रोफेसर विघ्नेश कुमार ने 1857 की क्रांति की विस्तृत जानकारी देते हुए कहा कि विश्व की इस सबसे बड़ी क्रांति में हिंदुस्तान की 36 बिरादरियों ने मिलकर के योगदान दिया । आज हम सब का यह जिम्मेदारी है कि हम उन सभी क्रांतिकारियों के वंशजों का समय-समय पर सम्मान करें। जिससे भावी पीढ़ी में क्रांतिकारी और उनके वंशजों के
प्रतिकृतज्ञता का भाव बना रहे। इतिहासकार अमित पाठक ने बताया कि अकलपुरा की लड़ाई में जहां एक तरफ किसान तलवार ,भाले, लाठी आदि से लड़ रहे थे वहीं दूसरी तरफ अंग्रेजो के पास इनफील्ड जैसी आधुनिक राइफल और आर्टिलरी थी। अकलपुरा की लड़ाई लड़ने वाले नरपत सिंह का नाम क्षेत्र के लोगों में भी गुमनाम सा ही है, यह अत्यंत चिंता का विषय है। ऐसे क्रांतिकारी को जन सामान्य के बीच जाना जाना चाहिए। गांव गांव सर्वेक्षण के समय ओरल हिस्ट्री में जो बातें सामने आई वही बातें सिविल ऑफिसर डनलप द्वारा डॉक्यूमेंटेशन किए गए दस्तावेजों में भी प्राप्त हैं। अकलपुरा की लड़ाई आमने-सामने की लड़ाई थी। पूर्व विभाग अध्यक्ष प्रोफेसर आराधना ने कहा कि ओरल हिस्ट्री अत्यंत महत्वपूर्ण इतिहास का स्रोत है इसी से नरपत सिंह और विष्णु शरण दुबलिश जैसे गुमनाम क्रांतिकारियों के योगदान का पता चलता है । सरधना क्षेत्र का भामोरी गांव लघु जलियांवाला बाग के नाम से प्रसिद्ध है।
इस अवसर पर डॉ हिमांशु ने बताया कि उस समय सरधना तहसील पर राजपूतों व रागडो का कब्जा हो गया था।
कार्यक्रम का उद्घाटन शहीदों के समक्ष दीप प्रज्वलन एवं पुष्पांजलि के साथ संयुक्त रूप से प्रोफेसर के के शर्मा,प्रोफेसर विघ्नेश कुमार,प्रोफेसर आराधना, डॉ अमित पाठक, अजय सोम व प्रभात राय ने संयुक्त रूप से किया। कार्यक्रम का संचालन डॉक्टर स्नेहवीर पुंडीर ने किया।