80 वर्षों से होलिका बना रहा मुस्लिम परिवार, चौथी पीढ़ी भी संजोए है अद्भुत कला।
मेरठ आधुनिकता के युग में हर क्षेत्र में नित नई तकनीकों को अपनाय जा रहा है। इससे होलिका के कारीगर भी पीछे नहीं रहे। उन्होंने होलिका को भी हाईटेक बना दिया है। हाईटेक होलिका का रिमोर्ट से दूर खड़े होकर दहन किया जा सकेगा। इस होलिका को तैयार किया है, 80 वर्षांे से होलिका बनाने वाले हाजी इदरीस के परिवार ने। इस परिवार की चौथी पीढ़ी होलिका बनाने की कला को संजोए है। यह मुस्लिम परिवार सांप्रदायिक सौहार्द का नमूना भी पेश कर रहा है।
गुदड़ी बाजार की पतली सी गली में हाजी इदरीस का परिवार करीब 80 वर्षों से होलिका बनाता आ रहा है। इसके अलावा दीपक भी होलिका बनाते हैं। एक जमाना था जब यहां होली से एक माह पूर्व ही होलिका तैयार करने के लिए बुकिंग शुरू हो जाती थी। मेरठ शहर के साथ-साथ आसपास के गांवों और कस्बों के अलावा, मुजफ्फरनगर, बागपत, गाजियाबाद, बिजनौर, बुलंदशहर तक यहां की होलिका सप्लाई की जाती थी। धीरे-धीरे दूसरे क्षेत्रों में भी कारीगर हो गए।
इसलिए यह कार्य बंट गया। अब केवल वे लोग इनसे होलिका बनवा रहे हैं, जो इनकी कारीगिरी के मुरीद हैं। इस परिवार ने जहां होलिका को विभिन्न साइजों व ग्राहक की मांग के अनुसार सुंदर बनाया वहीं हाईटेक होलिका भी बना डाली।
हाईटेक होलिका का दहन दूर खड़े होकर रिमोर्ट से किया जाता है। इससे होलिका दहन करना बेहद सुरक्षित होता है। इस बाजार में पांच फीट, सात फीट, 10 फीट और 12 फीट ऊंची होलिका तैयार की जा रही है।
स्टैंड वाली होलिका और बैठी होलिका भी तैयार की र्गइं। हालांकि इस बार इस बाजार में मंदी है। ग्राहक बहुत कम हैं।
इसको लेकर इस कला के कारीगर चिंतित हैं। इसकी वजह वे सस्ते सामान की होलिका मोहल्लों में मिल जाना मानते हैं। मोहम्मद सुहेल बताते हैं कि उनके यहां अंग्रेजों के जमाने से होलिका बनाने का कार्य चल रहा है। चौथी पीढ़ी में उनके बच्चे भी होलिका बनाते हैं। उन्होंने हाईटेक होलिका तैयार की है। जिसे रिमोर्ट से दहन किया जाता है।
होलिका स्थल को सजाने के लिए भी रंगबिरंगी कागज और पिन्नी की लटकन, झालरें, ढपली वाले झूमर, रिबिन की विभिन्न सुंदर वस्तुएं तैयार की हैं।
इस बार मंदी ने उनकी चिंता बढ़ा दी है। उनकी कारीगिरी के आगे धर्म आड़े नहीं आता। उन्हें होलिका तैयार करने में गर्व महसूस होता है।