भारतीय न्यायालयों में न्याय की देवी की प्रतिमा की आँखों पर पट्टी बंधी रहती थी, उनके एक हाथ में तराजू व दूसरे हाथ में तलवार रहती थी जिसको बदल कर अब उस हाथ में संविधान दिखाई देगा व आँखों से पट्टी हटा दी गयी है।
इस बदलाव के लिए विवेचना की गयी है कि कानून कभी अँधा नहीं होता सबको सामान दृष्टि से देखता है। हाथ में सविंधान का मकसद समाज में ये सन्देश देना है कि न्याय संविधान के अनुसार किया जाता है, दूसरे हाथ में तराजू इसका प्रतीक है कि कानून की नजर में सभी समान हैं। इस बदलाव का कारण बताया गया है कि न्याय की देवी का पुराना प्रतीक अंग्रेजों द्वारा स्थापित किया गया था जो उस जमाने के कानून बदलने पर प्रतीक में भी परिवर्तन होना चाहिए। अब प्रश्न ये है कि क्या ये विवेचना सर्वग्राही, सर्वसम्मत व सनातन है या बदलाव का सिर्फ कारण ये है कि न्याय की देवी का प्रतीक किसी दूसरे के द्वारा निर्णीत किया गया था। इसके सही निर्णय पर पहुँचने के लिए हमें अपना दृष्टिकोण निष्पक्ष रखते हुए कुछ ठंेपबध् । इेवसनजम मान्यताओं पर विचार करना पड़ेगा। प्रकृति ने जीव की संरचना करते समय शरीर में विभिन्न उद्देश्यों व क्रियाओं के लिए विभिन्न आंतरिक व बाहरी अंग जैसे ज्ञानेंद्रीय, कर्मेन्द्रिय व मस्तिष्क आदि अलग अलग क्रियाओं के लिए भिन्न भिन्न अंगों की रचना की। ईश्वर की इस रचना का हमारे विद्वान पूर्वजों ने भँली भांति अध्ययन किया व सामाजिक व प्राकृतिक सिद्धांतों के अनुसार इन अंगों के सही उपयोग व क्रियात्मकता को प्राप्त करने के लिए हमें मार्गदर्शित किया। हमारे विद्वानों ने हमें कार्य करने के तरीके व उद्देश्य ही नहीं बताये बल्कि जीवन को सुचारु रूप से चलाने के लिए कुछ नियम व उपनियम भी बना दिए जिन्हें परंपरा की संज्ञा दी गयी। लोग इन परम्पराओं का अनुसरण करें इसके लिए इनको या तो धर्म से या भावनाओं से जोड़ दिया गया। परम्पराओं के अनुसार ही न्यायालयों में न्यायधीशों के विशेषणों के प्रतीक के रूप में न्याय की देवी की परिकल्पना की गयी। हमारे विद्वानों ने न्याय की विशेषताओं के बारे में भी स्पष्ट किया 1- न्याय उचित 2 – निष्पक्ष हो और उसका 3 समय पर परिपालन हो। उचित समतुल्य न्याय से तात्पर्य है कि जिस प्रकार का कर्म (अपराध) किया है उसके अनुरूप ही अपराध बोध कराके दंड की प्रक्रिया के द्वारा न्याय को संतुलित किया जाये और उसके प्रतीक के रूप में न्याय की देवी के एक हाथ में तराजू दिखा कर न्यायधीशों का मार्गदर्शन किया जाये। निष्पक्ष न्याय:- न्याय का जो उद्देश्य है कि हम सभी नियमों का सुचारु रूप से पालन करें इसके लिए न्याय का निष्पक्ष जो सभी के लिए सामान जिसमें हमारी भावनाएं अपने-पराये, छोटे-बड़े, अच्छे-बुरे या अन्य मानवीय कमजोरियों से परे हो, होना आवश्यक है। चूँकि इन भावनाओं का ज्ञान हमारी ज्ञानेंद्रियों के द्वारा च्तवअपकम कराया जाता है अतः अपनी इन्द्रियों के कंट्रोल का प्रतीक या हमारे प्रत्येक कानून भ्नउंद इमींअपवनत ंदक भ्नउंद च्ेलबीवसवहल के अनुरूप उचित मानवीय मूल्यों के परिपालन के लिए होना चाहिए और ष्उचित ष् मापतोल एक तराजू से अधिक और कौन संतुलन की व्यवस्था करेगा। कानून का दूसरा गुण समानता है अर्थात अपना पराया, छोटा बड़ा व अन्य कमजोरियों से परे कानून सभी के लिए एक समान व पूर्ण पारदर्शी होना चाहिए जो खुली आँखों से ही संभव है। कानून बनाते समय, किस के लिए व क्यों बनाया जा रहा व अन्य परिस्थितियों का ज्ञान जिनको होगा वही लोग सही निर्णय ले सकते हैं। इसके साथ कानून किन किन आधारों पर बनाया जा सकता है। इसका साधन तो सिर्फ संविधान से ही प्राप्त हो सकता है। अतः खुली आँखों के साथ, एक हाथ में तराजू व दूसरे हाथ में संविधान की परिकल्पना ष्न्याय की देवी का न होकर, कानून की देवीष् का होना चाहिए। कानून चूँकि संसद में, सांसदों के द्वारा बनाया जाता है। अतः इस प्रतीक का सही स्थान न्यायालय न होकर संसद भवन होना चाहिए। न्याय के सही व गलत के लिए आँखों का खुला होना आवश्यक नहीं है परन्तु कानून के सही व गलत के लिए आँखों का खुला होना, अतिरिक्त योग्यता है।