नई दिल्ली एजेंसी। लोकसभा चुनाव से कुछ महीने पहले सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को 6 साल पुरानी इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को अवैध करार दिया। साथ ही इसके जरिए चंदा लेने पर तत्काल रोक लगा दी। कोर्ट ने कहा कि बॉन्ड की गोपनीयता बनाए रखना असंवैधानिक है। यह स्कीम सूचना के अधिकार का उल्लंघन है।
5 जज जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने सर्वसम्मति से फैसला सुनाया। चीफ जस्टिस ने कहा, श्पॉलिटिकल प्रॉसेस में राजनीतिक दल अहम यूनिट होते हैं। पॉलिटिकल फंडिंग की जानकारी, वह प्रक्रिया है, जिससे मतदाता को वोट डालने के लिए सही चॉइस मिलती है। वोटर्स को चुनावी फंडिंग के बारे में जानने का अधिकार है, जिससे मतदान के लिए सही चयन होता है।
इस पर विवाद क्यों: 2017 में अरुण जेटली ने इसे पेश करते वक्त दावा किया कि इससे राजनीतिक पार्टियों को मिलने वाली फंडिंग और चुनाव व्यवस्था में पारदर्शिता आएगी। ब्लैक मनी पर अंकुश लगेगा। दूसरी ओर इसका विरोध करने वालों का कहना है कि इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदने वाले की पहचान जाहिर नहीं की जाती है, इससे ये चुनावों में काले धन के इस्तेमाल का जरिया बन सकते हैं।
कुछ लोगों का आरोप है कि इस स्कीम को बड़े कॉर्पोरेट घरानों को ध्यान में रखकर लाया गया है। इससे ये घराने बिना पहचान उजागर हुए जितनी मर्जी उतना चंदा राजनीतिक पार्टियों को दे सकते हैं।
चुनावी बॉन्ड क्या है?
2017 के बजट में उस वक्त के वित्त मंत्री अरुण जेटली ने चुनावी या इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को पेश किया था। 2 जनवरी 2018 को केंद्र सरकार ने इसे नोटिफाई किया। ये एक तरह का प्रोमिसरी नोट होता है। जिसे बैंक नोट भी कहते हैं। इसे कोई भी भारतीय नागरिक या कंपनी खरीद सकती है। अगर आप इसे खरीदना चाहते हैं तो आपको ये स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की चुनी हुई ब्रांच में मिल जाएगा। इसे खरीदने वाला इस बॉन्ड को अपनी पसंद की पार्टी को डोनेट कर सकता है। बस वो पार्टी इसके लिए एलिजिबल होनी चाहिए।
क्या है पूरा मामला
इस योजना को 2017 में ही चुनौती दी गई थी, लेकिन सुनवाई 2019 में शुरू हुई। 12 अप्रैल, 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने सभी पॉलिटिकल पार्टियों को निर्देश दिया कि वे 30 मई, 2019 तक में एक लिफाफे में चुनावी बॉन्ड से जुड़ी सभी जानकारी चुनाव आयोग को दें।
हालांकि, कोर्ट ने इस योजना पर रोक नहीं लगाई। बाद में दिसंबर, 2019 में याचिकाकर्ता एसोसिएशन फॉर डेमोक्रटिक रिफॉर्म्स (।क्त्) ने इस योजना पर रोक लगाने के लिए एक आवेदन दिया। इसमें मीडिया रिपोर्ट्स के हवाले से बताया गया कि किस तरह चुनावी बॉन्ड योजना पर चुनाव आयोग और रिजर्व बैंक की चिंताओं को केंद्र सरकार ने दरकिनार किया था